हनीसकल (साइंटिफिक नाम: लोनिसेरा जैपोनिका) को हिंदी में मधुकर्कटी, संस्कृत में जिंजेरियल या कुमारी लता और इंग्लिश में जापानी हनीसकल के नाम से जाना जाता है। यह कैप्रीफोलियासी फैमिली की एक चढ़ने वाली बेल है, जिसका इस्तेमाल भारत, चीन, जापान और कोरिया में सदियों से दवा के तौर पर किया जाता रहा है। इसके फूल, कलियाँ, पत्तियाँ और तने सभी में दवा के गुण होते हैं। खास तौर पर, फूल की कलियाँ सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होती हैं।
आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी दवा में, हनीसकल को ठंडा माना जाता है, जिसका स्वाद कड़वा-मीठा होता है, और यह पित्त साफ़ करने और कफ निकालने वाला होता है।
हनीसकल से कौन-कौन सी बीमारियों में लाभ होता है?
हनीसकल में क्लोरोजेनिक एसिड, ल्यूटिओलिन, इनोसीटॉल और कई एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं, जिसके कारण यह निम्न रोगों में प्रभावी है:
- वायरल बुखार और ऊपरी श्वसन तंत्र के संक्रमण
- सामान्य सर्दी-जुकाम, गले में खराश, टॉन्सिलाइटिस, फ्लू (इन्फ्लुएंजा)
- शुरुआती चरण के वायरल बुखार में बहुत प्रभावी
- गर्मी से संबंधित विकार (पित्त प्रकृति)
- मुंह के छाले, गले में जलन, गर्मी के फोड़े-फुंसी
- त्वचा रोग
- एक्जिमा, खुजली, फोड़े-फुंसी, घाव जो दे(delay) भरते हों
- जीवाणु जनित संक्रमण
- कुछ ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया पर प्रभावी
- सूजन (इन्फ्लेमेशन) कम करना
- गठिया, जोड़ों की सूजन में सहायक
- डिटॉक्सिफिकेशन
- शरीर से गर्मी और विषैले तत्व निकालने में मदद
- मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI)
- हल्के-फुल्के मामलों में सहायक
उपयोग की विधियाँ और मात्रा (AYUSH आधारित)
- काढ़ा
- 5-10 ग्राम सूखी हनीसकल कलियाँ या फूल 400 मिली पानी में उबालें। जब पानी 100 मिली रह जाए तब छानकर पिएं।
- दिन में 2 बार, खाली पेट या भोजन के 1 घंटे बाद।
- चाय
- 3-5 ग्राम सूखे फूल 200 मिली गर्म पानी में 10 मिनट तक ढककर रखें। छानकर शहद के साथ पिएं।
- गले की खराश और सर्दी में बहुत लाभकारी।
- पाउडर
- 1-3 ग्राम पाउडर शहद या गर्म पानी के साथ।
- बाहरी उपयोग
- फोड़े-फुंसी या घाव पर काढ़े से धोना या लेप बनाकर लगाना।
- सामान्य मात्रा (वयस्क)
- आंतरिक उपयोग: 3-12 ग्राम सूखा माल प्रति दिन
- बच्चे (5-12 वर्ष): आधी मात्रा
सावधानियां और मतभेद (Cautions & Contraindications)
- गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं बिना चिकित्सक की सलाह के न लें।
- जिन्हें ठंडी प्रकृति (कफ प्रधान) है और पाचन कमजोर है, उन्हें कम मात्रा में और अदरक के साथ लेना चाहिए।
- लंबे समय तक (4 हफ्ते से ज्यादा) लगातार उपयोग न करें।
- सर्जरी से 2 हफ्ते पहले बंद कर दें (रक्तस्राव की संभावना बढ़ सकती है)।
- बहुत अधिक मात्रा में लेने से दस्त, उल्टी या पेट में ठंडक हो सकती है।
- स्प्लीन (तिल्ली) की कमजोरी या यिन की कमी वाले रोगियों में सावधानी बरतें।
एलर्जी और दुष्प्रभाव (Allergies & Side Effects)
- कुछ लोगों को त्वचा पर चकत्ते, खुजली या सांस लेने में तकलीफ हो सकती है (दुर्लभ)।
- अत्यधिक मात्रा में लेने से मतली, उल्टी, दस्त, पेट दर्द।
- बहुत ठंडी प्रकृति होने से कफ बढ़ सकता है।
- रक्त को पतला करने वाली दवाएं (वॉर्फरिन, एस्पिरिन) ले रहे हों तो डॉक्टर से पूछें।
विशेष नोट
हनीसकल का प्रभाव शुरुआती चरण की बीमारियों में सबसे अच्छा होता है, खासकर जब जीभ पर लालिमा और गले में जलन हो। पुरानी और जटिल बीमारियों में इसे अकेले नहीं, बल्कि अन्य जड़ी-बूटियों (जैसे पुदीना, यष्टिमधु, फोरसिथिया आदि) के साथ संयोजन में लेना ज्यादा प्रभावी होता है।
संदर्भ स्रोत (References):
- आयुर्वेदिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया, भाग-1, खंड-6 (मधुकर्कटी)
https://ayush.gov.in - भैषज्य रत्नावली (रसायन प्रकरण) एवं चरक संहिता (चिकित्सा स्थान)
- National Center for Complementary and Integrative Health (NCCIH) – Honeysuckle monograph
https://www.nccih.nih.gov/health/honeysuckle
नोट: इस लेख में दी गई जानकारी केवल संदर्भ के लिए है। कोई भी उपचार शुरू करने से पहले, खासकर हर्बल उपचार या जीवनशैली में बदलाव करने से पहले, हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।




